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समय भास्कर मुंबई । वैल्यू इन्वेस्टिंग का मतलब अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग हो सकता है। वैल्यू की माप देखने वाले की आंख में होती है। हो सकता है कि किसी एक व्यक्ति के लिए जो वैल्यू है, जरूरी नहीं कि दूसरे व्यक्ति के लिए भी वही समान वैल्यू हो।
संक्षेप में, वैल्यू इन्वेस्टिंग निवेश का वह स्टाईल है, जिसमें निवेशक एक स्टाॅक इसके अंतर्निहित मूल्य से काफी अच्छी छूट पर खरीदता है। निवेशक ये स्टॉक खरीदते वक्त ‘सुरक्षा का मार्जिन’ चाहते हैं। यह स्टॉक के बाजार मूल्य और अंतर्निंहित मूल्य के बीच के अंतर के बराबर होता है।
बाजार दो चरम स्थितियों में बीच उतार-चढ़ाव करता रहता है। उदाहरण के लिए लापरवाह विकास के चलते स्टॉक प्रतिकूल हो सकते हैं। लेकिन बाजार में घबराहट के चलते नीचे गिरने की प्रकृति के कारण कीमतें अनापेक्षित स्तर तक नीचे जा सकती हैं। इस स्थिति में वैल्यू इन्वेस्टर के लिए अवसर के द्वार खुल जाते हैं, क्योंकि अब निहित मूल्य स्टॉक के मूल्य से बेहतर हो सकता है। इससे काफी कम कीमतों में खरीदी करने का अवसर मिलता है।
वैल्यू इन्वेस्टिंग के लिए दो प्रचलित सिद्धांत हैं। पहला बेंजामिन ग्राहम का ‘सिगार बट’ दृष्टिकोण है, जिसमें व्यक्ति आंकड़ों की दृष्टि से सस्ती कंपनियां खरीदता है, फिर चाहे बिजनेस खुद में उतना अच्छा न हो। इस सिद्धांत के तहत ये स्टॉक उसी तरह खरीदे जाते हैं जैसे कोई सबसे ज्यादा प्रयोग किया जा चुका सिगार खरीदा जा रहा हो। उसमें हो सकता है कि एक या दो पफ ही पीने के लिए बचे रह जाएं, जो बिल्कुल मुफ्त हो जाएंगे। तो यहां पर आप केवल संख्या की बात करते हैं और बिजनेस की क्वालिटी पर ज्यादा ध्यान नहीं देते।
दूसरा सिद्धांत वारेन बफेट का है, जिसमें आप टिकाऊ प्रतिस्पर्धी फायदे के साथ किफायती वैल्युएशन पर अत्यधिक उच्च क्वालिटी का बिजनेस चाहते हैं। मैं इसी सिद्धांत का पालन करता हूं।
इस सिद्धांत के साथ निवेश करते वक्त कंपनी में देखी जाने वाली कुछ विशेषताएं हैं: प्रबंधन की क्वालिटी, किसी प्रकार का खंदक या फिर प्रतिस्पर्धी फायदा, कम या फिर नगण्य उधार, उच्च लाभांश, न्यून पूंजी इंटेंसिटी तथा उच्च रिटर्न-आन-ईक्विटी (आरओई)। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि यह फंड्स किफायती वैल्युएशन पर उपलब्ध होने चाहिए। साथ ही व्यक्ति के निवेश का आधार लंबा होना चाहिए (आदर्श रूप से पाँच साल से ज्यादा)।
इस तरह के अवसर पहचानना और पाना बहुत मुश्किल हो सकता है और इसके लिए एक निवेशक की सोच होना जरूरी है। इसका मतलब है कि निर्णय लेने की प्रक्रिया में डर की भावना को समाप्त कर देना तथा केवल भावनाओं की जगह तथ्यात्मक आंकड़ों के आधार पर काम करना।
अगर यह मुश्किल, भ्रामक या डर पैदा करने वाला लगे, तो चिंता न करें! भारत में निवेशकों के लिए अच्छी खबर यह है कि बाजार में अच्छी वैल्यू के कुछ फंड्स मौजूद हैं, जिनका ट्रैक रिकार्ड लंबा व अच्छा है और निवेशक इनमें निवेश करके अपने निवेश के फैसले को प्रोफेशनल मैनेजर्स पर छोड़ सकते हैं ।
वैल्यू फंड्स पोर्टफोलियो में कम तरलता और कम जोखिम प्रदान करते हैं। जब सुरक्षा के मार्जिन के साथ निवेश कर लिया जाता है, तो नीचे की गिरावट सुरक्षित हो जाती है और यदि बाजार लंबे समय तक गिरावट में रहे, तो इस तूफान से बाहर निकलने में मदद कर सकता है।
जब बाजार ऊपर की ओर बढ़ता है और वैल्युएशन महंगे हो जाते हैं, तो ऐसे वैल्यू फंड्स कुछ कैश कॉल करते हैं, क्योंकि निवेश-योग्य विचार काफी मुश्किल से आते हैं। वैल्यू फंड ‘हाट सेक्टर’ या फिर बाजार की कल्पनाओं के पीछे नहीं भागते हैं क्योंकि ये ज्यादातर महंगे होते हैं और वैल्यू की कार्ययोजना में फिट नहीं बैठते। एक बात जरूर है कि यदि बाजार अपनी गति जारी रखते हैं, तो अल्प अवधि में ये फंड रिटर्न कम कर देते हैं।
इसलिए इन फंडों में फंड मैनेजर्स तथा निवेशकों के लिए धैर्य, अनुशासन, दीर्घकालिक दृष्टिकोण और ‘परेशानी उठाने की क्षमता’ महत्वपूर्ण गुण हैं। इन फंड्स के मैनेजर्स अमूमन ऐसे सेक्टर तलाशते हैं, जो प्रतिकूल हों और ऐसी अच्छी कंपनियों में निवेश के अवसर तलाशते हैं, जिनके स्टॉक के मूल्य अंदरूनी या बाहरी अस्थाई कारणों की वजह से गिर गए हैं।
चूंकि स्टॉक के मूल्य तथा इसके अंतर्निहित मूय के बीच के अंतर को भरने में समय लग सकता है, इसलिए हमेशा यह सलाह दी जाती है कि ऐसे फंड तभी लिए जाएं, जब व्यक्ति कम से कम पांच सालों के लिए इनमें निवेश बरकरार रख सके।
इन फंड्स का प्रमुख लक्ष्य है: मुश्किल हालात में गिरावट का लाभ उठायें और दीर्घकाल में अधिक मुनाफा कमायें। एनएवी में कम उतार-चढ़ाव के साथ रिटर्न की निरंतरता स्वर्णिम मापदंड है, जिसकी अपेक्षा ऐसी स्कीम रखती हैं। वो अंधे होकर अपने साथियों का अनुसरण करने की जगह एक अनुशासित दृष्टिकोण अपनाना पसंद करती हैं।
बिना विचार किये रिटर्न के पीछे भागने से जोखिम बढ़ता है। यह तब तक फायदेमंद हो सकता है, जब तक समय अच्छा रहता है। लेकिन जब बाजार करवट बदलता है, तब ऐसे फंड बड़े नुकसान पहुंचाते हैं क्योंकि वो हाट सेक्टर्स में निवेश करते हैं, जिनके वैल्युएशन उम्मीद के स्तर से बहुत ज्यादा होते हैं। इसके विपरीत लेबल पर टिके रहने वाले वैल्यू फंड इतना नीचे नहीं गिरते और इसीलिए आपकी पूंजी की रक्षा करते हैं।
इन फंड्स का मानना है कि कंपाउंडिंग की शक्ति दीर्घकाल में पूंजी का निर्माण करेगी और यह व्यक्ति की पूंजी का अनावश्यक जोखिम कम करके किया जा सकता है। उनका मानना है कि यदि आप पूंजी का नुकसान नहीं करते हैं, तो आप अपनी आधी लड़ाई यूं ही जीत जाते हैं।अंत में यही कहूंगा कि यदि निवेशक के पास कम से कम पांच साल तक पूंजी को निवेश में रखने का धैर्य है और वह कम तरलता तथा जोखिम के साथ दीर्घकालिक पूंजी निर्माण चाहता है, तो उसे निवेश के लिए वैल्यू फंड्स ही चुनना चाहिए।
डिस्क्लेमर: इस लेख में दिए गए विचार व दृष्टिकोण लेखक के स्वयं के हैं और कंपनी या फिर उनके द्वारा दी गई स्कीम को किसी भी रूप में प्रमोट नहीं करते हैं।